Devshayani Ekadashi इस साल 17 july आनेवाली है! देवशयनी एकादशी, जिसे आषाढ़ी एकादशी या पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है।
यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है। इसे देवताओं के शयन (सोने) का दिन माना जाता है, और इसी दिन से चातुर्मास व्रत की शुरुआत होती है, जो चार महीने तक चलता है।
इस दिन को मनाने के पीछे की पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु इस आषाढ़ शुक्ल एकादशी को क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास के रूप में जाना जाता है, जो पूजा और व्रत के लिए बहुत पवित्र माने जाते हैं।
इस दिन भक्तगण उपवास रखते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं और भगवान विष्णु के नाम का जाप करते हैं। इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आषाढ़ी एकादशी (Devshayani Ekadashi) से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और परंपराएं इस प्रकार हैं:
- उपवास और पूजा Devshayani Ekadashi पर:
- भक्त इस दिन उपवास रखते हैं, जो सूर्योदय से अगले दिन के सूर्योदय तक चलता है।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाकर, फूल, फल और तुलसी के पत्ते चढ़ाकर पूजा की जाती है।
- विष्णु सहस्रनाम, भगवद गीता या विष्णु पुराण का पाठ किया जाता है।
- पौराणिक कथा Devshayani Ekadashi:
- कथा के अनुसार, एक बार मुर नामक राक्षस ने देवताओं को बहुत परेशान किया। तब भगवान विष्णु ने मुर को मारकर देवताओं को मुक्ति दिलाई। इस घटना के बाद, भगवान विष्णु ने आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन योग निद्रा में चले गए।
- योग निद्रा की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक के चार महीने शामिल होते हैं।
- चातुर्मास:
- यह चार महीने का समय भगवान विष्णु की योग निद्रा का माना जाता है।
- इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य नहीं किए जाते।
- संत, साधु और गृहस्थ अधिकतर समय भक्ति, साधना और धार्मिक अनुष्ठानों में बिताते हैं।
- धार्मिक महत्व:
- देवशयनी एकादशी को व्रत रखने और पूजा करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
- इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- यह एकादशी मोक्ष प्राप्ति का मार्ग भी खोलती है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:
- इस समय के दौरान, भक्तगण धार्मिक यात्राएं करते हैं और तीर्थस्थलों का दर्शन करते हैं।
- मंदिरों में विशेष पूजा और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
- इस दौरान सामाजिक कार्यक्रम और धार्मिक सत्संग भी होते हैं।